सिर के नीचे
सरकाही लो तकिया
मूँद भी लो जरा
आज की अपनी अखियाँ
आगोशमें ले तुम्हारी थकी साँस
सुलाए सुकूँ से मेरा अमलतास
स्वप्निल दुनियाकी
वह पीली चकाचौंध
समंदर से पर्बत
तुम्हारी निली सौंध
झरनो-वादियों में तुम्हाराही एहसास
ऋतू बनके बैठा मेरा अमलतास
करवट बदलके
जो निकलेगा सूरज
पीली-गुलाबी
तुम्हारी यह मूरत
आँखें खुली-अधखुली, मसलीसी, काश
जी भर के देखे मेरा अमलतास
सीढ़ी उतरती
कदम दर कदम
हो बेटी, हो माँ याँ
सखी हर जनम
जहाँ तुम रखो पैर वहीं मेरी शुरुआत
मैं दिन तुम्हारा, यह मेरा अमलतास