Wednesday, May 31, 2023

मेरा अमलतास


सिर के नीचे

सरकाही लो तकिया

मूँद भी लो जरा

आज की अपनी अखियाँ

आगोशमें ले तुम्हारी थकी साँस

सुलाए सुकूँ से मेरा अमलतास


स्वप्निल दुनियाकी

वह पीली चकाचौंध

समंदर से पर्बत

तुम्हारी निली सौंध

झरनो-वादियों में तुम्हाराही एहसास

ऋतू बनके बैठा मेरा अमलतास


करवट बदलके

जो निकलेगा सूरज

पीली-गुलाबी

तुम्हारी यह मूरत

आँखें खुली-अधखुली, मसलीसी, काश

जी भर के देखे मेरा अमलतास


सीढ़ी उतरती

कदम दर कदम

हो बेटी, हो माँ याँ

सखी हर जनम  

जहाँ तुम रखो पैर वहीं मेरी शुरुआत

मैं दिन तुम्हारा, यह मेरा अमलतास




बेघर


सालों तक की खूब पढ़ाई

पढ़ी जगह, कभी पढ़ी कहानी,

पढ़ी यादें, और पढ़ें कहीं श्राप,

कुछ इन्सान, कभी पढ़ी दुहाई


महीनों पहले तुम्हें खोलकर,

पढ़ते पढ़ते रईस हुआ हूँ

हर दिन है मेरा पृष्ठस्मृति* सा,

कोरा पन्ना सजा रहा हूँ


डरता हूँ - गर आँख लगे तो?

उस पन्ने पर इक जो सपना होगा

आँख खुली तो बहेगी स्याही

वह सपना फिर कोरा पन्ना होगा


धड़कन से पकड़ूँ कसकर, और

डर के मारे छाती पर ओढ़ूँ

खुली नजर की बंद कलम से

फिर भी वह सपना लिखता जाऊँ


यां रखूँ तुम्हें तकिये पर नीचे?

अनुक्रमणिका* तुम, मैं पीछे

पीठपृष्ठ* पर लिखता जाऊँ

उंगलियों से लकीरें खींचें


पढ़ना, लिखना, सपना सब सब तुम,

घर में चलताफिरता पुस्तक

यां कहूँ तुम्हें पढ़ना मेरा घर?

बस दुआ करूँ हो जाऊ ना बेघर


*पृष्ठस्मृति = bookmark

*अनुक्रमाणिका = index, table of contents

*पीठपृष्ठ = backpage/pages to follow


Saturday, January 21, 2023

गूँगापन

अब तक के टुकडे मेरे

कुछ बिखरे और कुछ निखरे

चढती रातों में से

कुछ खिलते और कुछ उतरे

आगोश में क्यों और कैसे

अपने समा जाती हो

अल्फ़ाज़ सीने में क्यों

तुम बोए जाती हो


आकाश का वह जो एक

और चेहरे पे तुम्हारे दो

जागे वह रातभर, और

दिल में जो सुलाए दो

उजियारी होकर नस में

जो हूक जगा जाती हो

माहताब सीने में क्यों

तुम बोए जाती हो


सहलाकर इतनी रातें

मुठ्ठीभर निकले क़िस्से

बने कोइ सरसराहट

कोइ चीखे मेरे हिस्से

इक रात पहनती, दूजी

पहनाती जाती हो

गूँगापन सीने में क्यों

तुम बोए जाती हो