Wednesday, May 31, 2023

बेघर


सालों तक की खूब पढ़ाई

पढ़ी जगह, कभी पढ़ी कहानी,

पढ़ी यादें, और पढ़ें कहीं श्राप,

कुछ इन्सान, कभी पढ़ी दुहाई


महीनों पहले तुम्हें खोलकर,

पढ़ते पढ़ते रईस हुआ हूँ

हर दिन है मेरा पृष्ठस्मृति* सा,

कोरा पन्ना सजा रहा हूँ


डरता हूँ - गर आँख लगे तो?

उस पन्ने पर इक जो सपना होगा

आँख खुली तो बहेगी स्याही

वह सपना फिर कोरा पन्ना होगा


धड़कन से पकड़ूँ कसकर, और

डर के मारे छाती पर ओढ़ूँ

खुली नजर की बंद कलम से

फिर भी वह सपना लिखता जाऊँ


यां रखूँ तुम्हें तकिये पर नीचे?

अनुक्रमणिका* तुम, मैं पीछे

पीठपृष्ठ* पर लिखता जाऊँ

उंगलियों से लकीरें खींचें


पढ़ना, लिखना, सपना सब सब तुम,

घर में चलताफिरता पुस्तक

यां कहूँ तुम्हें पढ़ना मेरा घर?

बस दुआ करूँ हो जाऊ ना बेघर


*पृष्ठस्मृति = bookmark

*अनुक्रमाणिका = index, table of contents

*पीठपृष्ठ = backpage/pages to follow


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